परिचय
'सौख्यम्' मतलब सुख और खुशहाली
हमारी दृष्टि
हमने हमारे रियुज़ेबल पैड्स (बार बार उपयोग किया जा सकने वाले) का नाम ‘सौख्यम्’ इसलिए चुना क्योंकि हम मानते हैं कि मासिक धर्म के विषय को बहुत लम्बे समय से उचित महत्व नहीं मिला है और इसे नज़रअंदाज़ किया गया है | स्त्री मनुष्य को जन्म देती है और मासिक धर्म इस क्रिया को संभव बनाता है। जब आप हमारे सुन्दर पैड्स का इस्तेमाल करेंगे, तब आप जीवनचक्र का उत्सव मनाएँगे और उसमें अपने स्थान का सम्मान करेंगे |
‘सौख्यम्’ रियुज़ेबल पैड्स को २०१६ में राष्ट्रिय ग्रामीण विकास संस्थान, भारत द्वारा ‘अत्यधिक अभिनवपूर्ण उत्पाद पुरस्कार’ (Most Innovative Product Award by National Institute of Rural Development, India) से सम्मानित किया गया |
इस परियोजना की सतत वित्तीय व्यवस्था (Sustainable Financing Mechanism) की सराहना संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन २०१८ (पोलैंड) में की गयी | २०२० में संयुक्त राष्ट्र के सस्टेनेबल डेवेलपमेंट गोल्स (संधारणीय विकास लक्ष्य) को आगे बढ़ाने हेतु सौख्यम् टीम के समर्पित कार्य के असाधारण प्रभाव, स्पष्टता और कार्य की वृद्धि के लिए टीम को ‘वीमेन फॉर इंडिया एंड सोशल फाउंडर नेटवर्क कोलिशन’ (Women for India and Social Founder Network Coalition, भारत के लिए महिलायें और सामाजिक संस्थापक नेटवर्क गठबंधन) की ओर से ‘वर्ष के सामाजिक उद्यम’ (Social Enterprise of the Year) के रूप में मान्यता दी गयी |
हमारी प्रेरणा
‘सौख्यम्’ रियुज़ेबल पैड्स माता अमृतानंदमयी मठ की एक परियोजना है | मठ एक गैर सरकारी संगठन (Non Government Organisation) है जिसे संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद के सलाहकार का स्थान प्राप्त है | इसका नेतृत्व अम्मा, श्री माता अमृतानंदमयी देवी कर रही हैं जो समस्त विश्व में आध्यात्मिक और मानवीय अग्रणी के रूप में श्रद्धेय हैं | पैड्स परियोजना की नींव २०१३ में रखी गयी जब मठ ने भारत के २० राज्यों में स्थित सुदूर गावों को उन्हें सस्टेनेबल डेवेलपमेंट (संधारणीय विकास) के प्रेरणास्त्रोत में परिवर्तित करने के लक्ष्य से गोद लिया |
हमारी सोच
भारत सरकार के परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण मंत्रालय की ओर से किये गए स्वास्थ्य सर्वेक्षण (२०१५-१६) पता चला है कि १५ से २४ वर्ष की आयु वाली ७७.५% शहरी लड़कियों के मुक़ाबले केवल ४८.२% ग्रामीण लड़कियाँ मासिक चक्र में सुरक्षा के स्वच्छ तरीकों का उपयोग कर रही हैं | और यह भी कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को होने वाली स्वास्थ्य सम्बन्धी कई समस्याओं का एकमेव कारण है - मासिक चक्र में उचित स्वच्छता की कमी |
आज ‘सौख्यम्’ रियुज़ेबल पैड्स भारत और विश्वभर के न सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में बल्कि शहरों में हज़ारों महिलाओं द्वारा उपयोग किये जा रहे हैं | शायद इन पैड्स की कम कीमत और आसान उपलब्धता ग्रामीण महिलाओं को अपील करता है | भारत की अनेकों राज्यों के स्वयं सहायता समूहों (सेल्फ हेल्प ग्रुप) की महिलायें ‘सौख्यम्’ रियुज़ेबल पैड्स बनाती और बेचती हैं | शहरी भारत में शिक्षित महिलायें इन्हे अपना रही हैं क्योंकि ये पैड्स हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बेहतर हैं |
केले के रेशे क्यों ?
यह व्यापक रूप से ज्ञात नहीं है लेकिन यह सच है। जैसे कागज बनाने के लिए पेड़ों को काटा जाता है, वैसे ही विश्व स्तर पर 99% डिस्पोजेबल पैड्स को बनाने और बेचने के लिए, पेड़ों को काटा जाता है, पैड में लगने वाले शोषक पदार्थ बनाने के लिए।
केले के रेशे (फाइबर) उत्तम शोषक हैं। वह एक प्रकार का सेल्यूलोज़ रेशा है। तथापि यह कृषक व्यर्थ/ कचरे से प्राप्त किया जाता है, इन रेशों के लिए पेड़ समय से पहले नहीं काटे जाते। केले का सर्वाधिक उत्पादन भारत में होता है। फलों के इस पेड़ की विशेषता यह है की यह सिर्फ एक बार फल देता है। इस पेड़ से ८-९ महीनों में फल मिलने के बाद पेड़ को काट दिया जाता है क्योंकि उसमे फिर कभी फल नहीं लगेंगे।
दुनिया में अब कुछ समूह हैं जो केले के रेशों से डिस्पोज़ेबल पैड्स बना रहे हैं। तथापि अम्मा ने टीम का केले के रेशों का बतौर शोषक उपयोग करके रियुज़ेबल पैड्स बनाने में मार्गदर्शन किया। अम्मा ने कहा, "भले ही केले के रेशे व्यर्थ/ कचरे से मिलते हों, हमें यह समझना चाहिए वो इतना कीमती है कि उसका सिर्फ एक बार उपयोग करके उसे फेंका नहीं जाना चाहिए।" हमें लगा मानो अम्मा हमें स्थिरता के मूल सिद्धांत सिखा रही हैं। कोई भी डिस्पोज़ेबल वस्तु आगे चलकर सस्टेनेबल (सतत चलने वाली) नहीं हो सकती ।
